!!! नव वर्ष-2011 की ढेरों मुबारकवाद !!!
चित्र : अक्षिता (पाखी)
'बाल-दुनिया' में बच्चों की बातें होंगी, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ होंगीं, उनके ब्लॉगों की बातें होगीं, बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ होंगीं और भी बहुत कुछ....
क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है।यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

गुड़िया भला किसे नहीं भाती। गुडिया को लेकर न जाने कितने गीत लिखे गए हैं. गुडिया के बिना बचपन अधूरा ही कहा जायेगा. खिलौने के रूप में प्रयुक्त गुड़िया लोगों को इतना भाने लगी कि इसके नाम पर बच्चों के नाम भी रखे जाने लगे. बचपन में अपने हाथों से बने गई गुड़िया किसे नहीं याद होगी. गुड्डे-गुड़िया का खेल और फिर उनकी शादी॥न जाने क्या-क्या मनभावन चीजें इससे जुडी थीं. लोग मेले में जाते तो गुड़िया जरुर खरीदकर लाते. रोते बच्चों को भी हँसा देती है प्यारी सी गुड़िया. अब तो बाजार में तरह-तरह की गुड़िया उपलब्ध हैं. गुड़िया की बकायदा ब्रांडिंग कर मार्केटिंग भी की जा रही है.
सबसे पहले एक बेबी के रूप में गुड़िया को बनाने का श्रेय इंग्लैंड को जाता है। 19वीं शताब्दी में इस गुड़िया को भी वैक्स से बनाया गया था। 1880 में फ्रांस की बेबे नाम की गुड़िया तो खूब प्रसिद्द हुई थी। यही वह सुन्दर गुड़िया थी जिसको 1850 में बेबी के रूप में सबसे पहले बनाया गया था। इससे पहले की लगभग सभी गुड़िया बड़े लोगों के रूप में बने जाती थीं। लेकिन ये सभी गुड़िया काफी मँहगी थीं। जर्मनी ने बच्चों में गुड़िया का बढ़ता क्रेज देखकर सस्ती गुड़िया बनाने की शुरुआत की थी। मँहगी होने की वजह से अधिकतर माँ अपने बच्चे को काटन या लिनन के कपड़े से गुड़िया बनाकर देती थीं। 1850 में अमेरिकन कंपनियों ने इस प्रकार की गुड़िया बड़ी मात्रा में बनानी शुरू कर दीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गुड़िया बनाने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग शुरू किया गया. 1940 में कठोर प्लास्टिक की गुड़िया बनाई जाने लगीं। 1950 में रबड़, फोम आदि की गुड़िया भी बनाई जाने लगीं। इसके बाद तो गुड़िया को न जाने कितने रंग-रूप में ढाला गया. बार्बी गुड़िया के प्रति बच्चों का क्रेज जगजाहिर है. अब भिन्न-भिन्न प्रकार की और भिन्न-भिन्न दामों में गुड़िया बाजार में आ गई हैं. बस जरुरत है उन्हें खरीदने और फिर गुड़िया तो जीवन का अंग ही हो जाती है.
रानी लक्ष्मीबाई के नाम से भला कौन अपरिचित होगा. आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था. पर क्या कभी आपने सोचा है कि वे दिखती कैसी रही होंगीं. तो चलिए इस बार आपको उनका एक दुर्लभ चित्र दिखाते हैं. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यह दुर्लभ फोटो 159 साल पहले अर्थात वर्ष 1850 में कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज फोटोग्राफर जॉनस्टोन एंड हॉटमैन ने खींचा था। इस फोटो को 19 अगस्त, 2009 को भोपाल में आयोजित विश्व फोटोग्राफी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। यह चित्र अहमदाबाद के एक पुरातत्व महत्व की वस्तुओं के संग्रहकर्ता अमित अम्बालाल ने भेजा था। माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का यही एकमात्र फोटोग्राफ उपलब्ध है !! 


कल दशहरा (विजयदशमी) पर्व है. यह पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में माँ दुर्गा की लगातार नौ दिनों तक पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी प्रतीकात्मक रूप में रावण-पुतला का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की उद्घोषणा की जाती है.
आप सभी ने लेटर-बाक्स देखा होगा...लाल-लाल. अब तो हरे, पीले, नीले लेटर-बाक्स भी दिखने लगे हैं. ये लेटर बाक्स चिट्ठियों को एक जगह से दूजी जगह ले जाने के लिए आधार का कार्य करते हैं. इनके बिना तो पत्रों की दुनिया भी सूनी हो जाएगी. मोबाईल और नेट आ जाने के बाद दुनिया भर में व्यक्तिगत पत्रों की संख्या में कमी आई है, पर अपने देश में अभी भी हर दिन डाकिया 2 करोड़ डाक बाँटता है. सुनकर विश्वास नहीं होता न...पर यही सच है. आज तो 'विश्व डाक दिवस' भी है. इसी दिन विश्व डाक संघ का 1874 में गठन हुआ था. चलिए आज के दिन लेटर-बाक्स को लेकर एक बाल-कविता-

भारत इस वर्ष 3 अक्टूबर से 19 वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कर रहा है। परंपरानुसार इसकी शुरूआत 29 अक्तूबर, 2009 को बकिंघम पैलेस, लंदन में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को क्वीन्स बैटन हस्तांतरित करके हुई। इसके बाद ओलम्पिक एयर राइफल चैंपियन, अभिनव बिंद्रा ने क्वीन विक्टोरिया माॅन्युमेंट के चारों ओर रिले करते हुए क्वीन्स बैटन की यात्रा शुरू की। क्वीन्स बैटन सभी 71 राष्ट्रमंडल देशों में घूमने के बाद 25 जून, 2010 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर द्वारा भारत में पहुँच गई और उसे पूरे देश में 100 दिनों तक घुमाया जाएगा। इस बीच यह जिस भी शहर से गुजर रही है, वहाँ इसका रंगारंग कार्यक्रमों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरा देश है, जहाँ इसके सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बैटन रिले ले जाया जा रहा है.

मेरी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के एक बेहतरीन स्कूल में हुई। वहां शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को थप्पड़ मारना आम बात थी। यहां तक कि चौथी-पांचवीं कक्षा के बच्चों की भी बेंत से पिटाई लगाई जाती थी। सौभाग्य से मैं इससे बचा रहा। हालांकि छठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मैं उतना भाग्यशाली नहीं रहा। एक दिन स्कल्पचर की क्लास के दौरान जब मैं अपने एक मित्र के साथ सृजनात्मक मसले पर चर्चा कर रहा था कि तभी एक असिस्टेंट ने आकर मेरे सिर पर एक जोरदार चपत लगा दी। मैं गुस्से का घूंट पीकर रह गया। घर लौटने पर मैंने अपने पिता से कहा कि उन्हें इस मसले पर कुछ करना होगा। अगले दिन पिताजी मुझे स्कूल के प्रिंसिपल के पास लेकर गए और कहा कि वह नहीं चाहते कि उनके बेटे यानी मुझे स्कूल में शारीरिक दंड मिले। चर्चा करने के बाद यह तय हुआ कि अबसे मेरी जेब में हमेशा एक पत्र रहेगा, जिसमें लिखा था कि यदि किसी टीचर को मुझसे कोई समस्या है तो वह इसकी लिखित शिकायत मेरे पिताजी से कर सकता है लेकिन मुझे स्कूल में कोई मारेगा नहीं। इस पत्र पर प्रिंसिपल ऑफिस की मुहर लगी थी। उसके बाद से इस स्कूल में किसी भी टीचर ने मुझे नहीं मारा।

सुनने में आश्चर्य लगता है, पर दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र 11 वर्षीय ध्रुव ने अपने तीन साल के पालतू कुत्ते की दिनचर्या को लेकर उसकी आत्मकथा ही लिख डाली। ‘ऐज क्यूट ऐज पग’ नाम की इस किताब का लोकार्पण जाने माने पर्यावरणविद् और फिल्म निर्माता माइक पांडे ने किया। ध्रुव ने अपनी इस पुस्तक में एक कुत्ते की दृष्टि से दुनिया को देखने और समझने की कोशिश की . दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र ध्रुव का कहना है कि सबसे पहले गर्मी की छुट्टियों के दौरान स्कूल में मिले कहानी लेखन को लेकर उसके मन में कुत्ते की ओर से कुछ लिखने की बात दिमाग मेंआई कि आखिर एक कुत्ता हमारे बीच रहते हुए क्या सोचता होगा। ? कुत्ते की यह आत्मकथा हल्की-फुल्की कहानी के शक्ल में है, जिसमें भरपूर कॉमेडी है। मुख्य पात्र टप्पी है जिसका सपना है कि वह इंसानों जैसा दिखे।
इसी सपने को साकार करने के लिए वह कई बार इंसानों जैसी हरकतें करता है। इन सभी मजेदार हिस्सों को ध्रुव ने अपनी नन्हीं कल्पनाओं के आधार पर बड़े ही मजेदार तरीके से व्यक्त किया है।.वाकई यह दर्शाता है कि बच्चे कितने रचनात्मक होते हैं. अपने परिवेश में हो रही घटनाओं से वे ना-वाकिफ नहीं हैं और यहीं से उनकी रचनात्मकता को पंख भी लग जाते हैं...!!

आज 1अगस्त को ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ है। चलिए, आज इसके बारे में बताती हूँ। पूरी दुनिया में अगस्त माह का प्रथम रविवार फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है. इसके इतिहास में जाएँ तो अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालान्तर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया।
आज 30 जुलाई को मेरा जन्मदिन है। जन्मदिन की बात आती है तो ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत जरुर याद आता है. कभी सोचा है कि आखिर ये प्यारी सी पैरोडी आरम्भ कहां से हुई। आज आपने जन्मदिन पर इसी के बारे में बताती हूँ.

आइये आज आपको मिलवाते हैं, लोकसंघर्ष-परिकल्पना द्वारा आयोजित ब्लागोत्सव-2010 में वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा का ख़िताब पाई अक्षिता (पाखी) से. अक्षिता के बारे में लिखी इन पंक्तियों पर गौर करें- एक ऐसी नन्ही ब्लोगर जिसके तेवर किसी परिपक्व ब्लोगर से कम नहीं....जिसकी मासूमियत में छिपा है एक समृद्ध रचना संसार...जो अपने मस्तिष्क की आग को बड़ी होकर पूरी दुनिया के हृदय तक पहुंचाना चाहती है....जानते हैं कौन है वो ?
अब चलिए सितारों की महफ़िल में भी अक्षिता (पाखी) से मिलते हैं-
भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा हर वर्ष बच्चों को उनकी बहादुरी के अनुकरणीय कार्यों के लिए पुरस्कार प्रदान किया जाता है। ये पुरस्कार भारत के प्रधानमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस से ठीक पहले भेंट किया जाता है। पुरस्कार प्राप्त बच्चे राजधानी दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में भी हिस्सा लेते हैं।
बचपन भला किसे नहीं भाता. हम कितने भी बड़े हो जाएँ, पर बचपन की यादें कभी नहीं भूलतीं. हमारे अंतर्मन में एक बच्चा सदैव जीवंत रहता है, जरुरत बस उसे खोजने की है. कई बार जब हम उदासी के दरमियाँ होते हैं, तो अचानक बचपन से जुडी कोई याद हमें गुदगुदा जाती है. आजकल के बच्चे भी तो काफी फास्ट हो गए हैं. ब्लॉग जगत में उनके बनाये चित्र दिखने लगे हैं तो उनकी प्यारी-प्यारी अभिव्यक्तियाँ भी रंग बिखेरनी लगी हैं. 'बाल-दुनिया' में बच्चों की बातें होंगी, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ होंगीं, उनके ब्लॉगों की बातें होगीं, बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ होंगीं और भी बहुत कुछ....पर यह सब हम अकेले नहीं कर सकते, इसलिए हमें आप सभी के सहयोग की भी जरुरत पड़ेगी।