
सर्वप्रथम गुड़िया बनाने का श्रेय इजिप्ट यानी मिश्रवासियों को जाता है। इजिप्ट में लगभग 2000 साल पहले धनी परिवारों में गुड़िया होती थीं। इनका प्रयोग पूजा के लिए व कुछ अलग प्रकार की गुड़िया का प्रयोग बच्चे खेलने के लिए करते थे। पहले इस पर फ्लैट लकड़ी को पेंट करके, उस पर डिजाइन किया जाता था। बालों को वुडन बीड्स या मिट्टी से बनाया जाता था। ग्रीस और रोम के बच्चे बड़े होने पर लकड़ी से बनी अपनी गुड़िया देवी को चढ़ा देते थे। उस समय हड्डियों से भी गुड़िया बनाई जाती थीं। ये आज की तुलना में बहुत साधारण होती थीं। कुछ समय बाद वैक्स से भी गुड़िया बनाई जाने लगीं। इसके बाद गुड़िया को रंग-बिरंगी ड्रेसेस पहनाई जाने लगीं। यूरोप भी एक समय में डाॅल्स हब था। वहाँ बड़ी मात्रा में गुड़िया बनाई जाती थीं।
17वीं-18वीं शताब्दी में वैक्स और वुड की बनी गुड़िया बहुत प्रचलित थीं। धीरे-धीरे इनमें सुधार होता रहा। 1850 से 1930 के बीच इंग्लैंड में गुड़िया के बनाने में एक और परिवर्तन किया गया। इनके सिर को वैक्स या मिट्टी से बनाकर प्लास्टर से इसको मोल्ड किया गया।

कई लोग तो तरह-तरह की गुड़िया इकठ्ठा करने का भी शौक रखते हैं. गुड़िया के बकायदा संग्रहालय भी हैं. इनमें से एक शंकर अन्तर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय नई दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के भवन में स्थित है। इस संग्रहालय की स्थापना मशहूर कार्टूनिस्ट के. शंकर पिल्लई ने की थी। विभिन्न परिधानों में सजी गुड़ियों का यह संग्रह विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है। 1000 गुड़ियों से आरंभ इस संग्रहालय में वर्तमान में लगभग 85 देशों की करीब 6500 गुडि़यों का संग्रह देखा जा सकता है। यहाँ एक हिस्से में यूरोपियन देशों, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, राष्ट्र मंडल देशों की गुडि़याँ रखी गई हैं तो दूसरे भाग में एशियाई देशों, मध्यपूर्व, अफ्रीका और भारत की गुड़ियाँ प्रदर्शित की गई हैं। इन गुड़ियों को खूब सजाकर रखा गया है।
6 comments:
गुड़ियों के बारे में पहली बार इतने विस्तार से पढ़ा. कई अनजाने पहलू. आभार.
जहाँ तक मुझे याद है, आपका यह लेख जनसत्ता में भी पढ़ चूका हूँ.
वाह, कित्ती प्यारी-प्यारी गुडिया.
गुड़ियों के बारे में इतना कुछ जानकर अच्छा लगा...बचपन की यादें ताजा हो गईं.
गुड़ियों के बारे में इतना कुछ जानकर अच्छा लगा...बचपन की यादें ताजा हो गईं.
अब भिन्न-भिन्न प्रकार की और भिन्न-भिन्न दामों में गुड़िया बाजार में आ गई हैं. बस जरुरत है उन्हें खरीदने और फिर गुड़िया तो जीवन का अंग ही हो जाती है.
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