एकदम काला काला सा और भूखा भी
अन्तिम घर का नौनिहाल था वो
घण्टी सुनकर स्कूल आता वेणीराम
ले बस्ता,बुझे मन से चल पड़ता स्कूल
बैठता था कुछ देर बारामदे में
जी अटका था बकरियों में
उसके बहरे कानों तक जा पंहुचती थी
मिंमियाती बकरियां,ढोर-ढंगर की आवाजाही
सुन आहट स्कूल के पिछवाड़े से ही
अनायास ही चल पड़ता फिर घर को
झुमता,कूदता हुआ,लांगता था नालियां
कारागार से छुटने सी खुशी थी उसे
एक नही दो नही,कई वेणीराम थे वहां
छपरे से झांकती उसकी मेहनती मां
और बाड़े से झांकती बकरियां
बुलाती थी उसे गरजवाली आंखों की टकटकी
रहा बसेरा इसी बस्ती में मेरा भी दिन चार
पेड़ों के सूखे पत्ते और झुरमुट झाड़ियां
थी उसके जीवन का रंगीन हिस्सा
चार भाइयों और तीन बहनों में
छुटका था वो सबसे पिछड़ा
ऑरकुट ,आईपीएल और सेंसेक्स
बेअसर लगते थे
उसकी बकरियों के झुण्डवाली मस्ती में
कमरबंधी रोटी,चटनी और दो प्याज
गिरते नही थे कहीं उसकी उछल-कूद में
तेज भूख,बीहड़ जंगल और गंदले तालाब
नंगे शरीर डूबकियों से बढ़ता आनन्द ऐसे में
बस्ती के बरगद पर लकड़ी में अटका
पगल्ये वाला झण्डा
और धूणी वाले बाबा पर मोहित चलमें पीते
उपरले मौहल्ले के ज़मादार
आज़ भी याद आते हैं
पीली मिट्टी से कभी-कभार पुती दीवारों पर
गेरुआं रंग के माण्डने देखे थे
खड़िया से बने दो-चार फूल और बेलबूटों
से झांकती है रचना उनकी
जैसे-तैसे
परेशानी के जीवन में खुशियां
छांटते थे वे लोग
दु:ख-दर्द की घड़ियों में
हिम्मत बांटते थे वे लोग
हम जान पायेंगे कैसे उन
आड़े-तिरछे छप्पर वाले
बेसुध मकानों की पीड़ा
नहीं भूल पाता हूं
सरकारी स्कूल की टोंटियां खुल्ली छोड़ जाते
आते जाते गुडमोर्निंग कहते वे
अनपढ़ और घुमक्कड़ बच्चें
याद रहा उनकी बोटल में भरा
पीपल वाले हेण्डपंप का गन्दा पानी
मेल जमे नाखुनों पर नेलपोलिश करती लड़कियां
जिसमें काम आती बाबुजी के पेन की नली
फूंक लगाकर स्लेट सुखाती
वो उलझे बालों वाली अनाथ लड़कियां
टंविंकल-टंविंकल से बढ़िया ब्याह के गीत गाती थी
कभी लगा कि
पुरखों की ज़बरन से हुए
बाल विवाह की उपज थी वो
हां कुछ बातें पक्की थी
स्कूल कभी का छूट गया
उपले,जंगल और खेतीबाड़ी
यही बचा बस उपवन में
ले देकर जिमणे के दिन याद आती थी
स्कूल के लिये मंगाई खाखी पेंट
झण्डे के झण्डे काम आती
वो सलवार-कुर्ती
झाड़ियों से हुई हाथापाई से बचा-कुचा
नीला शर्ट काम आयेगा
आज फ़िर से मरणभोज में जाते जाते
गांवों की जब-जब बात चली
पड़ौसी के ब्याह और मेले-मण्डप में
डोलते फिरते जो इधर उधर
वेणीराम से लड़के और फुलो जैसी लड़की
ताज़े अभिनय लगते रहे
कहानी अभी बाकी है
अध्धे और पव्वे मे डुबे लोगों की
लोगों से पिटती हुई अबलायें लिखना बाकी है
बस्ती का घोर अन्धेरा
छूकर डरना बाकी है
आज़ का अन्तिम यहीं तलक बस
अब मेरी भी
बकरियां छूटी जाती है
लिखुंगा फ़िर कभी मैं
फ़ुरसत में अपनी बस्ती को
लाउंगा वेणीराम और फुलो को भी
फिर से
कविता में कबड्डी खेलने को !!
*****************************
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'बाल-दुनिया' में बच्चों की बातें होंगी, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ होंगीं, उनके ब्लॉगों की बातें होगीं, बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ होंगीं और भी बहुत कुछ....
Wednesday, 27 October, 2010
Friday, 22 October, 2010
मिलकर रहते कितने सारे - संजय भास्कर

देखो एक गगन पर तारे,
मिलकर रहते कितने सारे
नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों,
इनसे मिल कर रहना सीखो
अपना लो तारों की आदत,
लगने लगोगे सबको प्यारे
या फिर शिक्षा फलों से लो,
एक बाग़ में खिलते सारे
कभी न आपस में लड़ते वो,
एक को एक भी न मारे
अगर न तुमको हो कुछ आता,
तो ले लो औरों से शिक्षा
मिलकर रहना हमें सिखाते,
कुदरत के लाखों नज़ारे
संजय भास्कर
Saturday, 16 October, 2010
यूँ आरंभ हुआ विजयदशमी पर्व - कृष्ण कुमार यादव

दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है।
आप सभी को विजयदशमी पर्व की ढेरों शुभकामनायें !!
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कृष्ण कुमार यादव,
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विशेष दिवस/पर्व-त्यौहार
Wednesday, 13 October, 2010
नन्हे-मुन्नों की पैनी नज़र, भेदती धरती-आकाश की खबर
प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. यदि उचित परिवेश मिले तो बच्चे भी बड़ों जैसा कार्य कर सकते हैं. झारखण्ड में जमदेशपुर के पास मुसाबनी इलाके के नन्हें पत्रकार आजकल चर्चा में हैं. यूनिसेफ के सहयोग से चल रहे कार्यक्रम में प्रकाशित ये बच्चे किसी से पीछे नहीं हैं. वे रिपोर्टिंग करते हैं, फोटोग्राफी करते हैं और कई बार अपने कार्यों से लोगों को सचेत/सजग भी करते हैं. इनके अख़बार हैं- संथाल दर्पण, टालाडीह खबर, हालधबनी टाइम्स...और भी ढेर सारे. इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट आउटलुक पत्रिका के सितम्बर -2010 अंक में प्रकाशित हुई है. उसे यहाँ साभार स्कैन कर प्रकाशित किया जा रहा है-

(साभार : आउटलुक, सितम्बर 2010)
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नन्हीं प्रतिभा,
रोचक
Saturday, 9 October, 2010
लेटर बाक्स - कृष्ण कुमार यादव

लाल रंग का लेटर बाक्स
पेट इसका खूब बड़ा
जाड़ा, गर्मी या बरसात
रहता है अडिग खड़ा
लाल, गुलाबी, हरे, नीले
पत्र जायें देश-विदेश
हर पत्र की है महत्ता
छुपा हुआ सबका संदेश।
खूब सारे पत्र आते
पेट में इसके समाते
सब पाकर अपना संदेशा
मन ही मन खुश हो जाते।
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विशेष दिवस/पर्व-त्यौहार
Saturday, 2 October, 2010
हम बच्चों के प्यारे बापू - कृष्ण कुमार यादव

देश के प्यारे गाँधी बाबा
बच्चों के बापू कहलाए
सत्य-अहिंसा की नीति से
देश को आजादी दिलवाए .
सूरज से चमके बापू जी
कभी न हिम्मत हारे थे
अंगरेजों को मार भगाया
पीछे-पीछे सारे थे .
हम बच्चों के प्यारे बापू
सपनों में जब आते हैं
सत्य, अहिंसा, दया, धर्म
देश प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं।
-कृष्ण कुमार यादव-
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विशेष दिवस/पर्व-त्यौहार
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