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Tuesday, 14 October 2014

'स्वच्छ भारत' को लेकर बच्चों ने बनाया डाक टिकट

 'स्वच्छ भारत' की संकल्पना को लेकर राष्ट्रीय डाक सप्ताह दौरान आयोजित फिलेटली दिवस पर स्कूली बच्चों ने  डाक टिकट बनाया। इलाहाबाद में 13 अक्टूबर, 2014 को आयोजित इस कार्यक्रम में बच्चों ने 'स्वच्छ भारत' के प्रति अपनी भावनाओं को खूबसूरत चित्रों में ढालते हुए भिन्न-भिन्न रंग भरे।  रंग भी इतने करीने से कि स्वच्छ्ता का अहसास करायें।  किसी ने भारत का नक्शा बनाकर तो किसी ने बापू जी माध्यम से स्वच्छ्ता का सन्देश दिया। इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि  इसका उद्देश्य डाक-टिकट संग्रह के प्रति बच्चों में अभिरूचि विकसित करना और डाक टिकटों के माध्यम से युवा पीढी को डाक सेवाओं के इतिहास से जोड़ते हुए 'राष्ट्रीय स्वच्छ्ता अभियान' से जोड़ना था।


(राष्ट्रीय बालश्री विजेता एलिस अंशु फिलिप को पुरस्कृत करते निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव)


डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने डाक टिकट डिजायन प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत भी किया। इनमें सीनियर वर्ग में सेंट एंथनी गर्ल्स  कान्वेंट की छात्रा एवं राष्ट्रीय बाल-श्री विजेता एलिस अंशु फिलिप ने प्रथम, श्रेया डे ने द्वितीय तथा ज्वाला देवी विद्या मंदिर के आशीष कुमार यादव को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। जूनियर वर्ग में ज्वाला देवी विद्या मंदिर के ईशू सेठ व प्रखर खरे ने क्रमशः प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त किया।  

Sunday, 7 September 2014

शिक्षक दिवस के बहाने बाल-मन से रूबरू हुए प्रधानमंत्री मोदी

शिक्षक दिवस पर पहली बार हुआ कि देश के प्रधानमंत्री ने स्कूली बच्चों को सम्बोधित किया हो। देशभर के बच्चों के साथ संवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यह मेरे लिए एक सौभाग्‍य की घड़ी है, कि मुझे उन बालकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है, जिनकी आंखों में भारत के भावी सपने सवार हैं, मगर धीरे-धीरे इस प्रेरक प्रसंग की अहमियत कम होती जा रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि शायद, बहुत सारे ऐसे स्‍कूल होंगे, जहां 5 सितंबर को याद भी नहीं किया जाता होगा, शिक्षकों को अवार्ड मिलना, उनका समारोह होना, यह ज्‍यादातर वहीं तक ही सीमित हो गया है। उन्होंने कहा कि आवश्‍यकता है कि हम इस बात को उजागर करें कि समाजिक जीवन में शिक्षक का महात्‍म्‍य क्‍या है और जब तक हम उस महात्‍म्‍य को स्‍वीकार नहीं करेंगे, न उस शिक्षक के प्रति गौरव पैदा होगा, न शिक्षक के माध्‍यम से नई पीढ़ी में परिवर्तन में कोई ज्‍यादा सफलता प्राप्त होगी, इस एक महान परंपरा को समयानुकूल परिवर्तन करके उसे अधिक प्राणवान एवं और अधिक तेजस्‍वी कैसे बनाया जाए इस पर एक चिंतन बहस होने की आवश्‍यकता है। प्रधानमंत्री ने सवाल उछाला कि क्‍या कारण है कि बहुत ही सामर्थ्यवान विद्यार्थी, टीचर बनना पसंद क्‍यों नहीं करते? इस सवाल का जवाब हम सबको खोजना होगा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक वैश्विक परिवेश में ऐसा माना जाता है कि सारी दुनिया में अच्‍छे टीचरों की बहुत बड़ी मांग है, अच्‍छे टीचर मिल नहीं रहे हैं, भारत एक युवा देश है, क्‍या भारत यह सपना नहीं दे सकता कि हम देश से उत्‍तम प्रकार के टीचर्स एक्‍सपोर्ट करेंगे? आज जो बालक हैं, उनके मन में हम यह इच्‍छा नहीं जगा सकते कि मैं भी एक अच्‍छा टीचर बनकर देश और समाज के लिए काम आऊंगा, ये भाव कैसे जगे? प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन ने इस देश की उत्‍तम सेवा की है, वह अपना जन्‍मदिन नहीं मनाते थे, व‍ह शिक्षक का जन्‍म दिन मनाने का आग्रह करते थे, ये शिक्षक दिवस की कल्‍पना ऐसे पैदा हुई है, खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्‍म मिला है। उन्होंने कहा किदुनिया में किसी भी बड़े व्‍यक्ति से पूछिए, अपने जीवन में सफलता के बारे में वह दो बातें अवश्‍य बताएगा, एक कहेगा कि मेरी मां का योगदान है और दूसरी कहेगा कि मेरे शिक्षक का योगदान है, करीब-करीब सभी महापुरूषों के जीवन में ये बात हमें सुनने को मिलती हैं, लेकिन क्या हम जहां हैं, वहां यही बात हम सजगतापूर्वक करने का प्रयास करते हैं? 

नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक जमाने में शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था कि गांव में सबसे आदरणीय कोई व्‍यक्ति हुआ करता था, तो वह शिक्षक हुआ करता था-‘नहीं मास्‍टर जी ने बता दिया है, मास्‍टर जी ने कह दिया है, ऐसा एक भाव था’ धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई है, उस स्थिति को हम पुन: प्रतिस्‍थापित कर सकते हैं। उन्होंने बच्चों से कहा कि एक बालक के नाते आपके मन में काफी सवाल होगें, आपमें से कई बालक ऐसे होंगे, जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आए और संडे को हमने क्‍या-क्‍या किया, जिसे स्कूल जाकर टीचर को बताऊंगा, जो अपनी मां को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता, वो बात अपने टीचर को बताने के लिए वह इतना लालायित रहता है, उसको टीचर से इतना आपनापन हो जाता है, कि वही उसके जीवन को बदलता है, फिर उसका शब्‍द उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाता है। उन्होंने कहा कि मैंने कई ऐसे विद्यार्थी देखें हैं, जो बात भी ऐसे बनाएंगे, जैसे उसका टीचर बनाता है, कपड़े भी ऐसे पहनेंगे जैसे उनका टीचर पहनता है, वो उनका हीरो होता है, ये जो अवस्‍था है, उस अवस्‍था को जितना हम प्राणवान बनाएंगे, उतनी ही अच्छी हमारी नई पीढ़ी तैयार होगी। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन में एक कहावत है कि जो लोग साल का सोचते हैं, वो अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं, वो फलों के वृक्ष बोते हैं, लेकिन जो पीढ़ियों को सोचते हैं वो इंसान बोते हैं, मतलब उसको शिक्षित करना, संस्‍कारित करना उसके जीवन को तैयार करना, हमारी शिक्षा प्रणाली को जीवन निर्माण के साथ कैसे हम जीवंत बनाएं ये सोचना और करना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मैंने 15 अगस्‍त को एक बात कही थी, कि मेरी इच्‍छा है कि हमारे देश में इस वर्ष जितने स्‍कूल हैं, उनमें कोई स्‍कूल ऐसा न हो, जिसमें बालिकाओं के लिए अलग टायलेट न हो, आज कई स्‍कूल ऐसे हैं, जहां बालिकाओं के लिए अलग टायलेट नहीं हैं, कुछ स्‍कूल ऐसे भी हैं, जहां बालक के लिए भी नहीं और बालिका के लिए भी टायलेट नहीं है, अब यूं तो लगेगा कि ये भी कोई काम है कि जो प्रधानमंत्री के लिये महत्वपूर्ण है, लेकिन जब मैं डिटेल में गया तो मुझे लगा कि यह बड़ा महत्‍वपूर्ण काम है, करने जैसा काम है, लेकिन देशभर के जो भी टीचर मुझे सुन रहे हैं, उनसे मुझे हर स्‍कूल में मदद चाहिए, इसके लिए एक माहौल बनना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि मैं अभी जापान गया था, वहां एक भारतीय परिवार मुझसे मिला, लेकिन उनकी पत्‍नी जापानी है, पतिदेव इंडियन हैं वो मेरे पास आकर बोले कि एक बात करनी है, मैंने कहा बताओ, बोले कि आपका 15 अगस्‍त का भाषण भी सुना था, आप जो साफ-सफाई पर बड़ा आग्रह कर रहे हैं, हमारे यहां नियम है कि जापान में हम सभी टीचर और स्‍टूडेंट मिलकर के स्‍कूल में सफाई करते हैं, टायलेट वगैरह की सब मिलकर सफाई करते हैं, हमारे स्‍कूल में ये हमारे चरित्र निर्माण का एक हिस्‍सा है, आप हिंदुस्‍तान में ऐसा क्‍यों नहीं कर सकते हैं? मैंने कहा कि मुझे जाकर मीडिया वालों से पूछना पड़ेगा, वरना इसका उलटा 24 घंटे चल पड़ता है, क्‍योंकि मैंने एक दिन ऐसा देखा था, जब मैं गुजरात में था तो टीवी पर समाचार आ रहा था और समाचार ये था कि गुजरात में बच्‍चे स्‍कूल में सफाई करते हैं और क्या तूफान खड़ा कर दिया था ये कैसा स्‍कूल हैं?, ये कैसा मैनेजमेंट है? ये कैसे टीचर हैं? बच्‍चों का दमन करते हैं, मैने उस दिन टीवी पर ये सब कुछ देखा था, लेकिन हम इसको एक राष्‍ट्रीय चरित्र कैसे बनाएं? ये बन सकता है और इसे बनाया जा सकता है। 

प्रधानमंत्री ने देश के गणमान्‍य लोगों से आग्रह करते हुए कहा कि वे डाक्‍टर बने होंगे, व‍कील बने होंगे, इंजीनियर बने होंगे, आईएएस अफसर बने होंगे, आईपीएस अफसर बने होंगे, बहुत कुछ होंगे, मगर क्‍या आप अपने निकट का कोई स्‍कूल पसंद करके सप्‍ताह में एक पीरियड, उन बच्‍चे को पढ़ाने का काम कर सकते हैं? स्‍कूल के साथ बैठ करके आप विषय तय करें, आप कितने ही पढ़े-लिखे या बड़े अफसर क्‍यों न हों, सप्‍ताह में पास के स्कूल जाकर एक पीरियड बच्‍चों के साथ बिताएं, उनको कुछ सिखाएं। उन्होंने कहा कि शिक्षा में कहीं कोई शिकायत है कि अच्‍छे टीचर नहीं हैं, ये फलाना नहीं है, ढिकाना नहीं है, इसको ठीक किया जा सकता है, हम राष्‍ट्र निमार्ण को एक जनांदोलन में परिवर्तित करें, हर किसी की शक्ति को जोड़ें, हम ऐसा देश नहीं हैं कि जिसको इतना पीछे रहने की जरूरत है, हम बहुत आगे जा सकते हैं और इसलिए हमारा राष्‍ट्रीय चरित्र कैसे बने, इस पर हम लोगों का कोई इंफैसिस होना चाहिए, प्रयास होना चाहिए और हम सब इसे मिलकर करेंगे, इसको किया जा सकता है। उन्होंने बच्चों से कहा कि एक विद्यार्थी के नाते आपके भी बहुत सारे सपने होंगे, मैं मानता हूं कि ज़िंदगी में परिस्थितियां किसी को भी रोक नहीं पाती हैं, अगर आगे बढ़ने वालों के इरादों में दम हो तो मैं मानता हूं कि इस देश के नौजवानों में, बालकों में वो सामर्थ्‍य है, उस सामर्थ्‍य को लेकर वो आगे बढ़ सकते हैं। 
उन्होंने कहा कि टेक्‍नोलॉजी का महात्‍म्‍य बहुत बढ़ रहा है, मैं सभी शिक्षकों से आग्रह करता हूं कि कुछ अगर सीखना पड़े तो सीखें, भले ही हमारी आयु 40-45-50 पर पहुंची हो, मगर हम सीखें और हम जिन बालकों के साथ जी रहे हैं, जो कि आज टेकनोलॉजी के युग में पल रहा है, बढ़ रहा है, उसे उससे वंचित न रखें, अगर हम उसे वंचित रखेंगे तो यह बहुत बड़ा क्राइम होगा, इट्स ए सोशल क्राइम, हमारी कोशिश होनी चाहिए कि आधुनिक विज्ञान, टेक्‍नोलॉजी से हमारे बालक जुड़ें, विश्‍व को उस रूप में जानने के लिए उसको वह अवसर मिलना चाहिए, यह हमारी कोशिश रहनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं भी आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं, जवाब देंगे आप लोग? देंगे ? अच्‍छा, आप में से कितने बालक हैं, जिनको दिन में चार बार भरपूर पसीना निकलता है शरीर से? कितने हैं? नहीं हैं ना? देखिए जीवन में खेल-कूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है, ये उम्र ऐसी है, इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्‍ती करनी चाहिए, इतना समय निकालना चाहिए, शरीर में कम से कम चार बार पसीना निकलना चाहिए, आप किताब, टीवी और कंप्‍यूटर, इस दायरे में ज़िंदगी नहीं दबनी चाहिए, इससे भी बहुत बड़ी दुनिया है और इसलिए ये मस्‍ती हमारे जीवन में होनी चाहिए, आप लोगों में से कितने हैं, जिनको पाठ्यक्रम के सिवाय किताबें पढ़ने का शौक हैं? चलिये बहुत अच्‍छी संख्‍या में हैं, ज्‍यादातर जीवन चरित्र पढ़ने का शौक है, ऐसे लोग कितने हैं? वो संख्‍या बहुत कम है, मेरा विद्यार्थियों से आग्रह है, जिसकी जीवनी आपको पसंद हो, उसका जीवन चरित्र आपको पढ़ना चाहिए, जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के बहुत निकट जाते हैं, क्‍योंकि उस व्‍यक्ति के बारे में जो भी लिखा जाता है, उसके नजदीक के इतिहास को हम भलीभांति जानते हैं। 

उन्होंने कहा कि कोई जरूरी नहीं है कि एक ही प्रकार के जीवन को पढ़ें, खेल-कूद में कोई आगे बढ़ा है तो उसका जीवन चरित्र पढ़ना चाहिए, सिने जगत में किसी ने प्रगति की है, उसका जीवन पढ़ने को मिलता है तो वो पढ़ना चाहिए, व्‍यापार जगत में किसी ने प्रगति की है, उसका जीवन चरित्र मिलता है तो इसको पढ़ना चाहिए, साइंटिस्‍ट के रूप में किसी ने काम किया है तो उसका जीवन पढ़ना चाहिए, लेकिन जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के काफी निकट और बाई एंड लार्ज सत्‍य को समझने में भी सुविधा होती है, हमारी कोशिश रहनी चाहिए, वरना आजकल तो, आप लोगों को वो आदत है, पता नहीं, हर काम गूगल गुरु करता है, कोई भी सवाल है, गूगल गुरु के पास चले जाओ, इंफोर्मेशन तो मिल जाती है, ज्ञान नहीं मिलता है, जानकारी नहीं मिलती है, इसलिए हम सब उस दिशा में प्रयास करें। विद्यार्थियों के मन में कुछ सवाल भी हैं, उनसे गप्प गोष्ठी करना मुझे अच्‍छा लगेगा, बहुत हल्‍का-फुल्‍का माहौल बना दीजिए, जरा भी गंभीर रहने की जरूरत नहीं है, आपके शिक्षक लोगों ने कहा होगा, ऐसा मत करो, यूं मत करो, ऐसे सब कहा होगा, नहीं, आपको आपके शिक्षक ने जो कहा है, यहां से जाने के बाद उसका पालन कीजिए, मगर अभी हंसते-खेलते आराम से बैठिए, हम बातें करेंगे। 







Monday, 18 August 2014

माखनचोर का जन्मदिन



मुरलीधर मथुराधिपति माधव मदनकिशोर. 
मेरे मन मन्दिर बसो मोहन माखनचोर. 

कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक बधाइयाँ !!

Sunday, 16 March 2014

प्यार के रंग से भरो पिचकारी


प्यार के रंग से भरो पिचकारी
स्नेह से रँग दो दुनिया सारी 
ये रंग न जाने कोई जात न बोली
आप सभी को मुबारक हो यह होली !!

Wednesday, 13 November 2013

बच्चे बनाएंगे डाक टिकट के लिए पेंटिंग


यदि आप चाहते हैं कि आपकी बनाई हुई पेंटिंग डाक टिकट के रूप में जारी हो तो यह अवसर लेकर आया है डाक विभाग। डाक विभाग देशव्यापी स्तर पर ‘‘स्टैम्प डिजाइन‘‘ प्रतियोगिता करवा रहा है जिसमें सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग को अगले वर्ष बाल दिवस पर डाक टिकट के रूप में जारी किया जायेगा। इस संबंध में जानकारी देते हुए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाक विभाग वर्ष 1998 से यह आयोजन करवा रहा है और इसके माध्यम से डाक टिकटों के प्रति बच्चों एवं विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है ।

डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि इस वर्ष की थीम ''एक दिन अपने दादा-दादी के साथ'' है जिस पर विद्यार्थियों को पेंटिंग बनानी है। यह पेटिंग स्याही, वाटर कलर, आयल कलर या किसी अन्य माध्यम से बनायी जा सकती है। प्रतियोगी ड्रांइग पेपर, आर्ट पेपर या अन्य किसी भी प्रकार का पेपर पेंटिंग के लिए इस्तेमाल कर सकते है। प्रतिभागियों को उक्त विषय पर मौलिक डिजायन ही बनानी है। निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि सभी विद्यार्थियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है - कक्षा 4 तक के विद्यार्थी, कक्षा 5 से कक्षा 8 तक के विद्यार्थी एवं कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के विद्यार्थी। सभी श्रेणियों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्तर पर क्रमशः 10,000, 6,000 एवं 4,000 रूपये के तीन-तीन पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर दिये जायेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर चुनी गयी पुरस्कृत प्रविष्टियों के आधार पर ही अगले वर्ष बाल दिवस पर डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण एवं मिनियेचर शीट इत्यादि का प्रकाशन किया जायेगा। 

निदेशक डाक सेवाएं, इलाहाबाद परिक्षेत्र, श्री कृष्ण कुमार यादव ने आगे बताया कि इलाहाबाद परिक्षेत्र के सभी डाक मण्डलों में उक्त प्रतियोगिता 16 नवम्बर 2013 दिन शनिवार को प्रातः 1100 बजे आयोजित होगी। यह प्रतियोगिता इलाहाबाद प्रधान डाकघर, वाराणसी प्रधान डाकघर, प्रतापगढ़ प्रधान डाकघर, जौनपुर प्रधान डाकघर, मिर्जापुर प्रधान डाकघर एवं गाजीपुर प्रधान डाकघर में आयोजित की जाएगी। 

Saturday, 26 January 2013

तिरंगा है शान हमारी

तीन रंग मे रंगा हुआ है,मेरे देश का झन्डा,
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा |

इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी ,
केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी |

संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ ,
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा |

शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया ,
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया |

महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया ,
शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया |

खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया ,
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया |

वसुधैव कुटुंब मे कोई.कहीं रहे न भूखा ,
मानवता जन-जन मे व्यापे,नहीं बाढ़ नहीं सुखा|

अशोक महान हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया ,
सावधान चौबीसों घंटे,चक्र का महत्व बताया |

नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता ,
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता |

तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये ,
अध्यात्म भारत की देन,विजय धवज फहराए |

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
8265821800

Sunday, 25 November 2012

बच्चों की बनाई पेंटिंग उभरेगी डाक-टिकट पर

हॉलिडे भला किसे नहीं भाता। हर बच्चे की अपनी कल्पनाएँ होती हैं कि हॉलिडे को कैसे खूबसूरत और यादगार बनाया जाय। और जब मौका इन्हें पेंटिंग के रूप में चित्रित करने का हो तो कैनवास पर कई तरह के रंग उभर कर आते हैं।  डाक विभाग द्वारा 23 नवम्बर, 2012 को आयोजित “डिजाईन ए  स्टाम्प” प्रतियोगिता में हॉलिडे विषय पर बच्चों ने पेंटिंग में ऐसे ही रंग बिखेरे।
 
       इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इस प्रतियोगिता में इलाहबाद परिक्षेत्र में कुल 389 बच्चों ने भाग लिया, जिनमे इलाहाबाद में 37, प्रतापगढ़ में 78, जौनपुर में 79, व वाराणसी में 192 प्रतिभागी बच्चे  शामिल हैं।  इलाहाबाद  में कुल 18 स्कूलों के बच्चों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिनमे सैंट एंथोनी  गर्ल्स इन्टर कॉलेज, बिशप जॉन्सन इंटर कालेज, डा. के. एन. काटजू इंटर कालेज, ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर, वशिष्ठ वात्सल्य पब्लिक स्कूल, पतंजलि ऋषिकुल इत्यादि शामिल हैं। सभी विद्यार्थियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया - कक्षा 4 तक के विद्यार्थी, कक्षा 5 से कक्षा 8 तक के विद्याथी एवं कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के विद्यार्थी ।
 
 निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि इन सभी प्रविष्टियों का मूल्यांकन रीजनल स्तर पर करने के बाद तीनों वर्गों में श्रेष्ठ प्रविष्टि को निदेशालय स्तर पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शामिल करने हेतु परिमंडलीय कार्यालय लखनऊ भेजा जायेगा और  सभी श्रेणियों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्तर पर क्रमशः 10,000, 6,000 एवं 4,000 रूप्ये के तीन-तीन पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर दिये जायेगें । राष्ट्रीय स्तर पर चुनी गयी पुरस्कृत प्रविष्टियों के आधार पर ही अगले वर्ष बाल दिवस पर डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण एवं मिनियेचर शीट इत्यादि का प्रकाशन किया जायेगा। इस अवसर पर स्कूली बच्चों , शिक्षको व अभिभावकों ने फिलाटेलिक डिपाजिट अकाउंट खोलने में भी रूचि दिखाई जिसके तहत उन्हें हर माह घर बैठे डाक टिकटें प्राप्त हो सकेंगी

Tuesday, 13 November 2012

इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं

दीपावली व आतिशबाजी का गहरा नाता है। लक्ष्मी पूजन के बाद शगुन के रूप में फोड़े जाने वाले पटाखे अब हमारी ही मौत का सामान बनते जा रहे हैं। हवा में जहर घोलते ये पटाखे कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक व्याधियों को जन्म दे रहे हैं।

पटाखों की धमक हमारे चेहरे पर जरूर मुस्कान लाती है, पर यह मुस्कान हमारी बर्बादी का पूर्वाभ्यास होती है। इसका आभास हमें उस वक्त नहीं होता जब हम पटाखों की रोशनी में खो जाते हैं।

आजकल के युवा पटाखे खरीदते समय उसकी तीखे शोर व प्रकाश पर ध्यान देते हैं। पटाखे के रूप में हम पैसों की बर्बादी व जान को जोखिम में डालने का पूरा-पूरा सामान खुशी-खुशी घर लाते हैं।  
* बीमारियों को खुला न्योता :- पटाखे जब जलते हैं और तेज धमाके के साथ फूटते हैं तो हममें से हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती है। उस वक्त हम भूल जाते हैं कि इन पटाखों के काले धुएँ व शोर का हमारे शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा?

जब पटाखे जलते व फूटते हैं तो उससे वायु में सल्फर डाइआक्साइड व नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं। पटाखों के धुएँ से अस्थमा व अन्य फेफड़ों संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

* पटाखों का शोर मत कहना वन्स मोर :- पटाखों की आवाज हमारी श्रवण शक्ति पर भी प्रभाव डालती है। इससे भविष्य में हमारी श्रवण शक्ति कमजोर हो सकती है।

आम दिनों में शोर का मानक स्तर दिन में 55 व रात में 45 डेसिबल के लगभग होता है परंतु दीपावल‍ी आते-आते यह 70 से 90 डेसिबल तक पहुँच जाता है। इतना अधिक शोर हमें बहरा करने के लिए पर्याप्त है।

* पटाखे, हादसों का पर्याय :-
कोई चीज हमें नुकसान पहुँचा सकती है। यह जानते हुए भी हम उसका उपयोग करते हैं। पटाखे हादसों का पर्याय हैं। हमारी थोड़ी-सी लापरवाही हमारे अमूल्य जीवन को बर्बाद कर सकती है। यह जानते हुए भी हम अपने शौक के खातिर हँसते-हँसते अपनी जान को दाँव पर लगाते हैं।
प्रतिवर्ष दीपावली पर कई लोग पटाखों से जल जाते हैं व कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। अनार, रॉकेट, रस्सी बम आदि धमाकेदार पटाखों के शौकीनों के साथ तो ये हादसे होते ही हैं। उस विध्वंसकारी चीज को आखिर हम क्यों इस्तेमाल करते हैं, जो हमें केवल क्षणिक सुख देती है?

* इकोफ्रेंडली पटाखे बेहतर विकल्प :-
पटाखों के शौकीनों के लिए इस दीपावली पर बाजार में इकोफ्रेंडली पटाखे आए हैं, जिससे आपका पटाखे जलाने का शौक भी पूरा हो जाएगा और वो भी वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर। अब आप ही बताएँ कि है ना यह फायदे का सौदा?

जिस परिवेश में हम रहते हैं, उसी को हम प्रदूषित करके अपनी जान के लिए खतरा मोल लेते हैं। पटाखे फोड़ना कोई बुरी बात नहीं है। दीपावली खुशियों का त्योहार है तो क्यों न हम इस दीपावली पर वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर इकोफ्रेंडली पटाखों से अपने इस शौक को पूरा करें।

Wednesday, 24 October 2012

यूँ आरंभ हुआ विजयदशमी पर्व

आज दशहरा (विजयदशमी) पर्व है. यह पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में माँ दुर्गा की लगातार नौ दिनों तक पूजा होती है।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी प्रतीकात्मक रूप में रावण-पुतला का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की उद्घोषणा की जाती है.

दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है।

आप सभी को विजयदशमी पर्व की ढेरों शुभकामनायें !!

कृष्ण कुमार यादव

Tuesday, 16 October 2012

'नवरात्र' पर 'नव-सृजन' की ओर हों तत्पर..

 
!! नवरात्र पर नव-सृजन की ओर तत्पर हों !!
***नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें ***

Tuesday, 5 June 2012

पर्यावरण सुरक्षित तो जीवन सुरक्षित

पर्यावरण सुरक्षित तो जीवन सुरक्षित
(विश्व पर्यावरण दिवस पर)

Friday, 23 March 2012

भारतीय नववर्ष विक्रमी सम्वत 2069 पर हार्दिक शुभकामनायें


आप सभी को भारतीय नववर्ष विक्रमी सम्वत 2069 और चैत्री नवरात्रारंभ पर हार्दिक शुभकामनायें. आप सभी के लिए यह नववर्ष अत्यन्त सुखद हो, शुभ हो, मंगलकारी व कल्याणकारी हो, नित नूतन उँचाइयों की ओर ले जाने वाला हो !!


-आकांक्षा यादव

Friday, 30 December 2011

नव वर्ष की शुभकामनाएं


..!!नव-वर्ष 2012 की आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएं..!!

Sunday, 25 December 2011

क्रिसमस की कहानी...

क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है।यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।

आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है. क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज़, क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है. मूलत: यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

क्रिसमस पर्व पर आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं !!

आकांक्षा यादव

Wednesday, 26 October 2011

जंगल में दीवाली - कृष्ण कुमार यादव


जंगल में मनी दीवाली
चारों तरफ फैली खुशहाली
शेर ने पटाखे छुड़ाये
लोमड़ी ने दिये जलाये

बन्दर करता खूब धमाल
भालू नाचे अपनी चाल
हाथी सब खा गया मिठाई
गिलहरी ने रोनी सूरत बनाई

शेर गरजे पानी बरसे
होती हाथी की ढुंढ़ाई
तब तक लोमड़ी मिठाई लाई
मिल-बाँट कर सबने खाई।


कृष्ण कुमार यादव

Thursday, 15 September 2011

हिंदी है यह हिंदी है...(कृष्ण कुमार यादव)


हिन्दी है यह हिन्दी है
राष्ट्र-भाल की बिन्दी है
भाषाओं की जान है
भारत का अरमान है।

अमर शहीदों ने अपनाया
अंग्रेजों को मार भगाया
बापू थे इसके पैरोकार
संविधान में मिला स्थान।

हम सबकी है यह अभिलाषा
हिन्दी बने राष्ट्र की भाषा
आओ सब गुणगान करें
सब मिलकर सम्मान करें।




Monday, 5 September 2011

शिक्षक दिवस पर हार्दिक बधाइयाँ


आज डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्ण का जन्म-दिवस है. इस तिथि को शिक्षक-दिवस के रूप में मनाया जाता है. शिक्षक दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !!

Monday, 22 August 2011

भयो नन्द लाल


माचो गोकुल में है त्यौहार, भयो नन्द लाल
खुशिया छाई है अपरम्पार, भयो नन्द लाल

मात यशोदा का है दुलारा,
सबकी आँखों का है तारा
अपनों गोविन्द मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

मात यशोदा झूम रही है
कृष्णा को वो चूम रही है
झूले पलना मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

देख के उसकी भोली सुरतिया
बोल रही है सारी सखिया
कितनो सुंदर है मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

!! कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को शुभकामनायें !!

जनोक्ति : निर्भय जैन

Monday, 15 August 2011

तिरंगे की शान : कृष्ण कुमार यादव


तीन रंगों का प्यारा झण्डा
राष्ट्रीय ध्वज है कहलाता
केसरिया, सफेद और हरा
आन-बान से यह लहराता

चौबीस तीलियों से बना चक्र
प्रगति की राह है दिखाता
समृद्धि और विकास के सपने
ले ऊँचे नभ में सदा फहराता

अमर शहीदों की वीरता और
बलिदान की याद दिलाता
कैसे स्वयं को किया समर्पित
इसकी झलक दिखलाता

आओ हम यह खायें कसम
शान न होगी इसकी कम
वीरों के बलिदानों को
व्यर्थ न जानें देंगे हम।

कृष्ण कुमार यादव