Friday 22 October, 2010

मिलकर रहते कितने सारे - संजय भास्कर


देखो एक गगन पर तारे,

मिलकर रहते कितने सारे

नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों,

इनसे मिल कर रहना सीखो

अपना लो तारों की आदत,

लगने लगोगे सबको प्यारे


या फिर शिक्षा फलों से लो,

एक बाग़ में खिलते सारे

कभी न आपस में लड़ते वो,

एक को एक भी न मारे


अगर न तुमको हो कुछ आता,

तो ले लो औरों से शिक्षा

मिलकर रहना हमें सिखाते,

कुदरत के लाखों नज़ारे


संजय भास्कर

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हमको भी कुछ बतला जाओ,
खेलो आकर संग हमारे।

निर्मला कपिला said...

वाह संजय तो बहुत अच्छी बाल कवितायें भी लिखते हैं। अति सुन्दर। बधाई संजय।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट है!
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चित्र बहुत ही बढिया है!
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आपकी पोस्ट को बाल चर्चा मंच में लिया गया है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/24.html

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत प्यारी कविता..बधाई.

Chaitanyaa Sharma said...

अरे वाह संजय भैया आपने हमारे लिए भी कितनी सुंदर कविता लिखी.... और अच्छी बात भी बताई .... थैंक्स

रानीविशाल said...

प्यारे प्यारे मामासाब इतनी बड़ी बड़ी ज्ञान की बातें इस सुन्दर कविता में कितने अच्छे से समझा दी आपने .....बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता मुझे
आपकी लाड़ली
अनुष्का