Thursday, 18 October 2012

सोन मछरिया

ताल में जी ताल में
 सोनमछरिया ताल में.
मछुआरे ने मंतर फूंका
जाल गया पाताल में

थर-थर कांप ताल का पानी
फंसी जाल में मछली रानी,
तड़प-तड़प कर सोनमछरिया
मछुआरे से बोली भैया-
मुझे निकालो, मुझे निकालो,
दम घुटता है जाल में.

जाल में जी जाल में
सोनमछरिया जाल में.

मछुआरे ने सोचा पल भर,
कहा- छोड़ दूं तुझे मैं अगर,
उठ जाएगा दाना-पानी,
क्या होगा फिर मछली रानी?'
मछली बोली रोती-रोती-
'मेरे पास पड़े कुछ मोती,
जल में छोड़ो, ले आऊँगी,
सारे तुमको दे जाऊंगी.'

मछुआरे को बात जंच गई,
बस मछली की जान बच गई,
मछुआरे को मोती दे कर
जल में फुदकी जल की रानी.
सोनमछरिया-मछुआरे की
खत्म हुई इस तरह कहानी.
 
C-H2/1002 Classic Residency, Rajnagar Extension, NH-58, Ghaziabad-201003,

4 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत रोचक बाल कथा सुन्दर कविता में...

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, बहुत सुन्दर..

Unknown said...

बहुत सुन्दर गीत..बधाई हो तैलंग जी को.

Shahroz said...

मछुआरे को बात जंच गई,
बस मछली की जान बच गई,
मछुआरे को मोती दे कर
जल में फुदकी जल की रानी.
सोनमछरिया-मछुआरे की
खत्म हुई इस तरह कहानी.
बेहद खूबसूरत बाल-गीत .. तैलंग जी को बधाइयाँ.