Sunday, 10 February 2013

लड्डू-बर्फी की शादी


जिस दिन होना थी लड्डू की,
बर्फीजी से शादी,
बर्फी बहुत कुरूप किसी ने,
 झूठी बात उड़ा दी|

गुस्से के मारे लड्डूजी,
जोरों से चिल्लाये|

बिना किसी से पूँछतांछ ,
वापस बारात ले आये|

लड्डू के दादा रसगुल्ला,
बर्फी के घर आये|

बर्फीजी को देख सामने ,
मन ही मन मुस्काये|

बर्फी तो इतनी सुंदर थी,
जैसे कोई परी हो|

पंख लगाकर आसमान
से, अभी अभी उतरी हो|

रसगुल्लाजी फिदा हो गये,
उस सुंदर बर्फी पर|

ब्याह कराकर उसको लाये,
वे चटपट अपने घर|

लड्डू क्वांरा बेचारा अब,
ड़ता रसगुल्ला से|

रसगुल्ला मुस्कराता रहता,
बिना किसी हल्ला के|

सुनी सुनाई बातों पर तुम,
कभी ध्यान मत देना|

क्या सच है क्या झूठ सुनिश्चित ,
खुद जाकर‌ कर लेना|

प्रभु दयाल श्रीवास्तव, छिंदवाडा, मध्य प्रदेश

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, मीठी मीठी कविता..

Prabhudayal Shrivastava said...

Thanks for comments

Akshitaa (Pakhi) said...

वाह, मुंह में पानी आ गया।