जिस दिन होना थी लड्डू की,
बर्फीजी से शादी,
बर्फी बहुत कुरूप किसी ने,
झूठी बात उड़ा दी|
गुस्से के मारे लड्डूजी,
जोरों से चिल्लाये|
बिना किसी से पूँछतांछ ,
वापस बारात ले आये|
लड्डू के दादा रसगुल्ला,
बर्फी के घर आये|
बर्फीजी को देख सामने ,
मन ही मन मुस्काये|
बर्फी तो इतनी सुंदर थी,
जैसे कोई परी हो|
पंख लगाकर आसमान
से, अभी अभी उतरी हो|
रसगुल्लाजी फिदा हो गये,
उस सुंदर बर्फी पर|
ब्याह कराकर उसको लाये,
वे चटपट अपने घर|
लड्डू क्वांरा बेचारा अब,
लड़ता रसगुल्ला से|
रसगुल्ला मुस्कराता रहता,
बिना किसी हल्ला के|
सुनी सुनाई बातों पर तुम,
कभी ध्यान मत देना|
क्या सच है क्या झूठ सुनिश्चित ,
खुद जाकर कर लेना|
प्रभु दयाल श्रीवास्तव, छिंदवाडा, मध्य प्रदेश
3 comments:
वाह, मीठी मीठी कविता..
Thanks for comments
वाह, मुंह में पानी आ गया।
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