Thursday, 24 December 2015

मुझे अपना दोस्त बना लो

आदिल के घर के पड़ोस में शर्मा अंकल रहते थे. उनका घर बहुत बड़ा था. बच्चे उनसे बहुत डरते थे. क्योंकि उनकी बड़ी बड़ी मूंछे थी जिसके कारण वो डरावने दिखते थे. उनका चेहरा हमेशा गुस्से में रहते थे. अंकल के अलावा उस घर में कोई ओर रहता था तो वो था रमेश भईया. वो अंकल के घर का सारा काम करते थे. उसे अंकल ने बोल रखा था कि बच्चे इस घर के आसपास दिखने नही चाहिए और अगर दिखे तो उसकी नौकरी चली जाएगी. इस कारण भईया बच्चों को उस मकान के आसपास फटकने नही देते थे. बच्चे अंकल के घर के बाजू के मैदान में क्रिकेट खेलते थे तो कई बार उनकी गेंद चली जाती थी. जिस भी बच्चे की वजह से गेंद अंकल के घर जाती थी उसी बच्चे को जाकर गेंद लानी पड़ती थी. पहले पहल तो बच्चों ने एक दो बार उस घर में जाकर गेंद मांगने की कोशिश भी की लेकिन गेंद तो नही मिली, हाँ अंकल से खूब सारी डाट जरुर मिली और उन्हें भगा दिया गया. उसके बाद से यह होने लगा कि जिस बच्चे की वजह से गेंद अंकल के घर जाती थी वो नयी गेंद खरीद कर ग्रुप में दे देता था. 

इस बार यह गलती आदिल से हो गयी. क्रिकेट खेलते समय जोश जोश में उसने एक लॉन्ग शोर्ट मार दी और गेंद सनसनाती हुई अंकल के घर जा गिरी. आदिल ने सोचा ‘अगर वो नयी गेंद के लिए अम्मी से पैसे मांगेगा तो वो गुस्सा करेगीं.’ आदिल के अब्बा ऑटो चलाते थे, लेकिन उनकी कमाई इतनी कम होती थी कि घर का खर्च बड़ी मुश्किल से हो पाता था, आदिल और उसके भाई बहन को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए आदिल की अम्मी भी घर में सिलाई का काम करती थी. आदिल की समझ में नही आ रहा था कि क्या करे. उसने सोचा ‘गेंद के लिए एक बार रमेश भैया से बात करता हूँ’. बड़ी हिम्मत करके वह अंकल के घर गया. शर्मा अंकल के बगीचे में बहुत सारे पेड़ लगे थे. वो रमेश भैया को धीरे से आवाज लगाने लगा, तभी उसे अपनी गेंद झाड़ी के पास दिखाई दे गयी, उसने राहत की सांस ली. गेंद लेकर जाने लगा तो उसे उसी झाड़ी में फंसी कुछ काली चीज दिखाई दी, हाथ बढ़ा कर उठाया तो पाया कि यह तो एक पर्स है, उसने पर्स को खोलकर देखा, उसमें बहुत सारे पैसे रखे थे. पर्स पर अंकल की तस्वीर थी. उसने पहले सोचा कि ‘पर्स अंकल को वापस कर देता हूँ,’ लेकिन फिर सोचा ‘उसे गेंद तो मिल गयी है पर्स यही छोड़ कर चुपचाप निकल जाता हूँ.अगर अंकल को जा कर पर्स दूगां तो वो मुझे अपने घर आया देख खूब डांटेगें,’ रमेश भईया पर्स को खोज लेगे,’ और उसने पर्स वही रखा, लेकिन उसे लगा वह ठीक नही कर रहा है, ‘अंकल भले ही उसे कितना भी डांटे, पर्स उन्हें दे देता हूँ, उसमें कितने सारे पैसे है, हो सकता है उन्होंने कुछ जरुरी काम के लिए इतने सारे पैसे निकाले होंगे.’ उसने पर्स उठाया और डरते डरते घर की घंटी बजायी, अंकल ने दरवाजा खोला, वो बहुत परेशांन लग रहे थे, आदिल कुछ कह पाता उससे पहले ही अंकल उसे डांटने लगे “तुम लोगों को कितनी बार कहा है यहाँ मत आया करो, लेकिन तुम लोग सुनते नही हो,भागो यहाँ से नही तो तुम्हारे घर में शिकायत करवाऊँगा.” और वो दरवाजा बंद करने लगे, आदिल ने कहा “अंकल एक मिनिट मेरी बात तो सुनिए,मेरी गेंद आपके बगीचे में आ गयी थी, मैं उसे लेने आया था तो वहां झाड़ी में ये पर्स मिला, इसमें बहुत सारे पैसे है, आपके गुस्से के डर से पहले सोचा कि इसे वही छोड़ कर चला जाता हूँ, लेकिन बाद में सोचा कि आप पर्स के लिए परेशांन हो रहे होगें, आप डांटेगें तो मैं डांट चुपचाप सुन लूंगा, ये पर्स ले लीजिये और मुझे माफ़ कर दीजिये, आगे से कभी आपके घर नही आऊँगा.” और आदिल अंकल को पर्स पकड़ा कर तेजी से भाग गया. 

दूसरे दिन जब सारे बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे तो रमेश भैया आते दिखाई दिए, अशोक ने आदिल से कहा ‘तुम्हे कल अंकल के घर नही जाना चाहिए था पता नही आज क्या समस्या हो गयी जो भईया को भेजा है,’ आदिल घबरा गया रमेश भैया ने पास आ कर कहा “तुम सभी बच्चों को अंकल बुला रहे हैं,” बच्चे बड़े हैरान हुए, ये पहली बार था कि अंकल खुद से उन सब को बुला रहे हैं. बच्चों ने सोचा कल की वजह से अंकल सब को बुला कर डांटने वाले हैं. सभी ने एक स्वर में जाने से मना कर दिया, तब रमेश भैया ने कहा “अरे डरो मत वो तुम लोगों को डांटेगें नही, बल्कि बात करने बुला रहे हैं,” सभी बच्चे घबराते हुए अंकल के घर पहुचें, वहां टेबल पर ढेर सारी खाने की चीज रखी थी,अंकल ने सभी बच्चों को प्यार से बैठाया और कहा “आदिल कल मैंने तुम्हे खूब डांटा,मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम सभी बच्चों के साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया, इसके लिए सभी से माफ़ी मांगता हूँ, क्या तुम लोग मुझे माफ़ करके अपना दोस्त बनाओगे?” सब बच्चों ने एक दूसरे की ओर देखा और एक साथ बोला “हाँ आज से आप हमारे दोस्त हुए”. और सारे बच्चे मेज पर रखी खाने की चीज पर टूट पड़े. अंकल दूर खड़े बच्चों के भोलेपन को प्यार से देख रहे थे. 

-उपासना बेहार
भोपाल (मध्य प्रदेश)
upasana2006@gmail.com

No comments: