Tuesday, 3 August 2010

मोबाइल : दीनदयाल शर्मा


माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत प्रस्तुति

Akanksha Yadav said...

माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

...वक़्त से पहले बड़े होते बच्चे...शानदार बाल-कविता. दीनदयाल जी को बधाई.

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर

दीनदयाल शर्मा said...

बाल - दुनिया में मेरी कविता 'मोबाइल' देख कर बहुत ही अच्छा लगा..आकांक्षा जी को बधाई और मेरी कविता पसंद करने वालों का धन्यवाद...

रावेंद्रकुमार रवि said...

उपदेश के नाम पर एक अच्छी कविता!

Akshitaa (Pakhi) said...

यह तो बहुत बढ़िया है. अब मुझे भी मोबाईल चाहिए....

Unknown said...

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

...Bahut badhiya..badhai.

Unknown said...

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

...Bahut badhiya..badhai.