Saturday 26 January, 2013

तिरंगा है शान हमारी

तीन रंग मे रंगा हुआ है,मेरे देश का झन्डा,
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा |

इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी ,
केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी |

संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ ,
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा |

शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया ,
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया |

महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया ,
शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया |

खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया ,
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया |

वसुधैव कुटुंब मे कोई.कहीं रहे न भूखा ,
मानवता जन-जन मे व्यापे,नहीं बाढ़ नहीं सुखा|

अशोक महान हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया ,
सावधान चौबीसों घंटे,चक्र का महत्व बताया |

नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता ,
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता |

तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये ,
अध्यात्म भारत की देन,विजय धवज फहराए |

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
8265821800

Sunday 20 January, 2013

जब 'दिया' चले कंप्यूटर से भी तेज

उसकी उम्र सात साल है और कक्षा तीन में पढ़ती है लेकिन दिमाग कंप्यूटर से भी तेज है। उसे आईआईटी स्तर के फिजिक्स के पांच सौ से अधिक फार्मूले याद हैं। बीएससी स्तर के गणित के सूत्रों को पलक झपकते हल कर देती है। कंप्यूटर के की-बोर्ड को आंख बंद करके बता देती है। उसकी प्रतिभा को देखते हुए उसके परिजन इस साल बारहवीं या बीएससी की परीक्षा दिलवाना चाहते हैं।
 
इस अनोखी प्रतिभा का नाम है दिया। उत्तर प्रदेश के शिवपुर की निवासी दिया के पिता मनोज नेगी कहते हैं मोटिवेट करने के लिए दिया को आगे बढ़ाना जरूरी है। मेरा प्रयास है कि इस साल वह कक्षा बारहवीं या बीएससी स्तर की परीक्षा में बैठे। वह बताते हैं कि गणित और विज्ञान में दिया की प्रतिभा गजब की है। एक बार वह जो फार्मूला सुन या पढ़ लेती है उसे कभी नहीं भूलती।
 
तीन साल पहले जाना
कक्षा तीन में पढ़ने वाली दिया नेगी के पिता मनोज नेगी बताते हैं कि वह कोचिंग क्लास चलाते हैं। तीन साल पहले ट्यूशन के दौरान दसवीं के विद्यार्थियों को गुणांक के सूत्र पूछ रहा था, तभी दिया ने कहा कि यह मुझे आते हैं। फिर उसने सारे सूत्र सही-सही बता दिए।
 
कभी नहीं की सुनियोजित पढ़ाई
मनोज नेगी बताते हैं कि बिना पढ़े इतने सूत्र बताने के बाद मैं दिया की प्रतिभा को देखना चाहता था। इसके बाद मैंने उसे कुछ सूत्र दिए और 24 घंटे में बताने को कहा। लेकिन उसने पांच घंटे बाद ही सब बता दिए। इस बीच उसका ध्यान पढ़ने में कम खेलने में अधिक था। फिर मैंने कुछ सूत्रों की डायरी बनाई। डायरी में आईआईटी से लेकर हर स्तर के गणित और भौतिक विज्ञान के सूत्र हैं। दिया को ये सभी सूत्र याद हैं। उसने इन्हें कब पढ़ा मुझे नहीं मालूम। न ही मैंने कभी उस पर ऐसी किसी किताब या सूत्र को पढ़ने के लिए जोर दिया। जब मैं कोचिंग क्लास चलाता हूं तो वह सूत्रों को सुन लेती है, जो उसे याद हो जाते हैं। अपने विषय को वह परीक्षा से कुछ समय पहले सिर्फ आधा घंटा पढ़ती है। दोस्तों के साथ वह अन्य बच्चों की तरह खेलती है।
 
इंजीनियर बनने का सपना
विद्यात्री पब्लिक स्कूल ग्रास्टनगंज में कक्षा तीन में पढ़ने वाली सात साल की दिया का कहना है कि वह साफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहती है। इतने सूत्र याद करने के बारे में वह बताती है कि कुछ देखकर सीखे हैं और कुछ सुनकर याद हो गए हैं।
 
दिया को क्या-क्या है याद
- कक्षा बारहवीं और बीएससी स्तर के गणित के त्रिकोणमिति के सभी सूत्र।
- भौतिक विज्ञान में आईआईटी स्तर के पांच सौ से अधिक सूत्र, जिसमें चुंबकीय क्षेत्र, इलेक्ट्रोस्टेटिक्स, मैगनेटिक्स शामिल हैं। किसी फार्मूले का मात्रक बता देने पर वह फार्मूला बता देती है। विमीय विश्लेषण से फार्मूला और फार्मूले से विमीय विश्लेषण निकालना उसके लिए बाएं हाथ का खेल है।
- रसायन विज्ञान में आवर्त सारणी को कहीं से भी किसी भी तरह बता देती है। सभी 112 एलिमेंट के भार और संख्या उसके सूत्र और पूरे नाम सहित बताती है।
- कंप्यूटर का पूरा की-बोर्ड आंख बंद करके बताती है।
- दसवीं के गणित के सूत्रों को आसानी से बता देती है।

Friday 11 January, 2013

हमारी माँ अगर होती


हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा|
फटकने दुख नहीं देती ,हमारे पास में पापा|


सुबह उठकर हमें वह दूध ,हँस हँस कर पिलाती थी|

डबल रोटी या बिस्कुट ,साथ में ,हमको खिलाती थी|

अगर होती सुबह से ही ,कभी की उठ चुकी होती|

हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा|


हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी|

किसी भी और माता से,अधिक वह प्यार करती थी|

नहीं अब साथ में तो यह,जहां बेकार लगता है|

नहीं अब कुछ बचा बाकी,हमारे हाथ में पापा|


सदा सोने से पहले लोरियाँ ,हमको सुनाती थी|

इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी|

हमें जब है जरूरत है,प्यार के बादल बरसने की|

पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा|


हमें यूं छोड़कर जाने की,उसको क्या जरूरत थी|

उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी|
हमें लगता किसी ने,यूं नज़र हमको लगाई है|

छुपा बैठा हमारे घर,हमारी घात में पापा|
 

- प्रभुदयाल श्रीवास्तव : pdayal_shrivastava@yahoo.com


लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

Tuesday 1 January, 2013

नव वर्ष- 2013 का अभिनन्दन !!

नव वर्ष का त्यौहार आया ! प्यार का पैगाम लाया !! भोर हुयी, कली मुस्कुराई ! नव वर्ष की शुभ बेला आई !!
  नई सुबह का आगमन होगा !
नव वर्ष का अभिनन्दन होगा !!