Monday, 26 July 2010

गर मैं चिड़िया होता : दीनदयाल शर्मा


पापा! गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।

भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।

होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।

धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।

कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता

दीनदयाल शर्मा

12 comments:

Anamikaghatak said...

bahut sundar ...........badhai

रंजन (Ranjan) said...

बहुत सुन्दर..

रंजन (Ranjan) said...

बहुत सुन्दर..

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, बहुत सुन्दर।

Akshitaa (Pakhi) said...

यह तो बहुत प्यारा बाल गीत है....दीनदयाल अंकल जी तो खूब अच्छा लिखते हैं.

Udan Tashtari said...

पाखी को पसंद आया..उसके सबसे प्यारे अंकल को पसंद आया...मतलब कि बहुत अच्छा है...बधाई!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर बालगीत !

दीनदयाल शर्मा said...

बाल-दुनिया में मेरी रचना ...गर मैं चिड़िया होता ...देख कर बहुत ही अच्छा लगा ....आकांक्षा जी और पाठकों को हार्दिक बधाई..

आपका अख्तर खान अकेला said...

achchi prstuti he lekin chidiyaa hone pr syyaad kaa bhi to dr hotaa naa. akhtar khan akela kota rajsthan

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


http://charchamanch.blogspot.com/

Unknown said...

गुनगुनाने का मन कर रहा है....दीनदयाल जी को बधाई और आकांक्षा यादव जी को इस अनुपम ब्लॉग हेतु बधाई.