पापा! गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।
भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।
होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।
धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।
कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता
दीनदयाल शर्मा
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।
भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।
होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।
धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।
कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता
दीनदयाल शर्मा
12 comments:
bahut sundar ...........badhai
बहुत सुन्दर..
बहुत सुन्दर..
वाह, बहुत सुन्दर।
यह तो बहुत प्यारा बाल गीत है....दीनदयाल अंकल जी तो खूब अच्छा लिखते हैं.
पाखी को पसंद आया..उसके सबसे प्यारे अंकल को पसंद आया...मतलब कि बहुत अच्छा है...बधाई!!
बहुत सुन्दर बालगीत !
बाल-दुनिया में मेरी रचना ...गर मैं चिड़िया होता ...देख कर बहुत ही अच्छा लगा ....आकांक्षा जी और पाठकों को हार्दिक बधाई..
achchi prstuti he lekin chidiyaa hone pr syyaad kaa bhi to dr hotaa naa. akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!
आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..
http://charchamanch.blogspot.com/
गुनगुनाने का मन कर रहा है....दीनदयाल जी को बधाई और आकांक्षा यादव जी को इस अनुपम ब्लॉग हेतु बधाई.
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