Monday, 20 December 2010

पुराने का न करो तिरस्कार : ओम प्रकाश बजाज


पुराने का न करो तिरस्कार,
पुराना नहीं होता सब बेकार,
बहुत काम के होते हैं,
पुराना घी, गुड़, चावल, अचार.

पुराने कपड़े, जूते, कापियां, किताबें,
कचरे में न डालो।
अपनी ये सब फालतू चीजें,
जरूरतमंदों को दिलवा दो.

नया खरीदने के चाव में,
पुराना बेकार न करते जाओ,
फजूलखर्ची की आदत छोड़ो,
किफायत का रहन-सहन अपनाओ।

ओम प्रकाश बजाज, बी-2, गगन विहार, गुप्तेश्वर, जबलपुर-482001

6 comments:

raghav said...

बहुत प्यारी कविता...बजाज जी को बधाई.

raghav said...

नया खरीदने के चाव में,
पुराना बेकार न करते जाओ,
फजूलखर्ची की आदत छोड़ो,
किफायत का रहन-सहन अपनाओ।...बच्चों और बड़ों दोनोंके लिए सार्थक सन्देश.

प्रवीण पाण्डेय said...

पिताजी के पास बिलकुल यही कैमरा था।

अनुष्का 'ईवा' said...

बहुत अच्छी शिक्षा ....धन्यवाद .

जयकृष्ण राय तुषार said...

पुराने कपड़े, जूते, कापियां, किताबें,
कचरे में न डालो।
अपनी ये सब फालतू चीजें,
जरूरतमंदों को दिलवा दो.

....कविता में छुपे भाव काफी ज्ञान्दायी हैं..

Anonymous said...

"Merry Christmas-मेरी क्रिसमस "
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HAPPY CHRISTMAS.
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सभी को क्रिसमस की शुभकामनाएँ!
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आपकी पोस्ट बाल चर्चा मंच परचर्चा में है!
http://mayankkhatima.uchcharan.com/2010/12/merry-christmas-32.html