Thursday 9 September, 2010

बारिश का मौसम : दीनदयाल शर्मा

बारिश का मौसम है आया।
हम बच्चों के मन को भाया।।
'छु' हो गई गरमी सारी।
मारें हम मिलकर किलकारी।।
कागज की हम नाव चलाएं।
छप-छप नाचें और नचाएं।।
मजा आ गया तगड़ा भारी।
आंखों में आ गई खुमारी।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएं।
चना चबीना खूब चबाएं।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी।
मिट गई मन की खुश्की सारी।।

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अच्छा याद दिलाया आपने, चाय पकौड़े खाते हैं।

arvind said...

bahut sundar kavita..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सचमुच, आपकी पोस्ट बहुत बढ़िया है।
--
इसकी चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/09/16.html

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छा बाल गीत!

आंच पर संबंध विस्‍तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!

KK Yadav said...

गरम पकौड़ी मिलकर खाएं।
चना चबीना खूब चबाएं।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी।
मिट गई मन की खुश्की सारी।।

...सुन्दर कविता..अब तो चाय-पकौड़ी की तलब भी महसूस हो रही है. दीनदयाल जी को बधाई.

निर्मला कपिला said...

बचपन मे बारिश का अपना हे मज़ा होता है । बहुत सुन्दर रचना बधाई।