Saturday, 17 July 2010

वो बचपन : मुकेश कुमार सिन्हा

जाड़े की शाम
धुल धूसरित मैदान
बगल की खेत से
गेहूं के बालियों की सुगंध
और मेरे शरीर से निकलता दुर्गन्ध !
तीन दिनों से
मैंने नहीं किया था स्नान
ऐसा था बचपन महान !

दादी की लाड़
दादा का प्यार
माँ से जरुरत के लिए तकरार
पढाई के लिए पापा-चाचा की मार
खेलने के दौरान दोस्तों का झापड़
सर "जी" की छड़ी की बौछाड़
क्यूं नहीं भूल पाता वो बचपन!!

घर से स्कूल जाना
बस्ता संभालना
दूसरे हाथों से
निक्कर को ऊपर खींचे रहना
नाक कभी कभी रहती बहती
जैसे कहती, जाओ, मैं नहीं चुप रहती
फिर भी मैया कहती थी
मेरा राजा बेटा सबसे प्यारा ..
प्यारा था वो बचपन सलोना !

स्कूल का क्लास
मैडम के आने से पहले
मैं मस्ती में कर रह था अट्टहास
मैडम ने जैसे ही मुझसे कुछ पूछा
रुक गयी सांस
फिर भी उन दिनों की रुकी साँसें ,
देती हैं आज भी खुबसूरत अहसास !
वो बचपन!!

स्कूल की छुट्टी के समय की घंटी की टन टन
बस्ते के साथ
दौड़ना , उछलना ...
याद है, कैसे कैसे चंचल छिछोड़े
हरकत करता था बाल मन
सबके मन में
एक खास जगह बनाने की आस लिए
दावं, पेंच खेलता था बचपन
हाय वो बचपन!!

वो चंचल शरारतें
चंदामामा की लोरी
दूध की कटोरी
मिश्री की चोरी !
आज भी बहुत सुकून देता है
वो बचपन की यादें
वो यादगार बचपन !!


मुकेश कुमार सिन्हा

8 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Thanx for including my poem..........very very thanx!!

Neelam said...

Mukesh jee..hamesha ki tarh bahut umda..lajawaab.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से बचपन को याद किया है...

प्रवीण पाण्डेय said...

हा हा, बड़ा सुन्दर चित्रण।

रश्मि प्रभा... said...

mere mann ka kona-kona tumhen aashish deta hai ..... bachpan ko jis dhang se canvas per utara hai, usmein gajab ka aakarshan hai ....

geet said...

hii
bahut achche hai ye kavita esko pad kar beta bachpan yaad aata hai

डॉ. जेन्नी शबनम said...

mukesh ji,
aapke blog par padh chuki hun e kavita, baal mann ke chaah ki sundar prastuti, shubhkaamnaayen.

Akshitaa (Pakhi) said...

वो चंचल शरारतें
चंदामामा की लोरी
दूध की कटोरी
मिश्री की चोरी !

...Bahut sundar.