एक फूल पाँखुरी
फूल छोड़कर बढ़ी
वायु के बहाव में
पंक में गिरी झड़ी
हो गई विवश विलाप कर रही
रूप रंग गंध लिए मर रही।
एक बूँद नीर की
साथ छोड़कर बढ़ी
ताप में जली भुनी
भाप की बढ़ी चढ़ी
सूखने लगी अलग थलग हुई
बन गई प्रवाह में छुई मुई।
एकता के योग से
एक तारिका गिरी
अपशकुन हुआ कहीं
व्योम में लगी झिरी
तालमेल टूटना प्रलाप है
तालमेल बैठना प्रताप है।
-डॉ० राष्ट्रबंधु-
6 comments:
डॉ०राष्ट्रबंधु जी बढ़िया रचना प्रस्तुति...आभार
. बहुत ही सुन्दर कविता
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा बालरचना है यह!
तालमेल यह बना रहे।
राष्ट्रबंधु दादा जी तो खूब कमाल का लिखते हैं...मजेदार !!
राष्ट्रबंधु दादा जी तो खूब कमाल का लिखते हैं...मजेदार !!
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