Friday, 7 January 2011

और किसी दिन आओ - डा. नागेश पांडेय 'संजय'


ट्रिन ट्रिन घंटी सुनकर चूहा ,

दरवाजे पर आया .

बोला -" जी , क्या काम , कहो क्यों ,

याद हमें फ़रमाया ? "

" बिल वाला हूँ , बिल लाया हूँ ;

बिल के पैसे लाओ.

बिल में घुसकर चूहा बोला -

" और किसी दिन आओ । "

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बिल में रहने का बिल।

Akshitaa (Pakhi) said...

हा..हा..हा...मजेदार चूहा और उसका बिल.

Manoj Kumar said...

बहुत मजेदार कविता. क्या बात है! बहुत खूब.

arvind said...

हा..हा..हा...मजेदार

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

आपने शिशुगीत सुन्दर ढंग से प्रकाशित किया . मेरा शिशुगीत पाठकों को पसंद आया , मैं ह्रदय से सभी का आभारी हूँ ..

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

पाठक गण मेरा बाल साहित्य यहाँ पढ़ सकते हैं -
http://abhinavsrijan.blogspot.com/

Unknown said...

नागेश भाई को पहली बार पढ़ा पर मजेदार रहा...

रावेंद्रकुमार रवि said...

सचमुच, बहुत मज़ेदार कविता है!

KK Yadav said...

नागेश जी की कुछेक कवितायेँ पढ़ी हैं, काफी अच्छा लिखते हैं. पर यहाँ बाल-दुनिया पर पहली बार पढ़ा...सुखद लगा.