यदि तुम खेलोगे-कूदोगे
तो ख़राब बन जाओगे,
झूठी हुई कहावत यह तो,
सबको ही बतलाओगे।
पढ़ने-लिखने वाले ही क्या
बस नवाब बन पाते हैं?
खेलकूद में रहते अव्वल
वे भी नाम कमाते हैं,
नई धरा है, नया गगन है
नये लक्ष्य तुम पाओगे।
देखो चाहे तेंदुलकर को
या सुनील गावस्कर को,
अथवा पी. टी. ऊषा हो फिर
खेल प्रिय नारी-नर को,
खेलों से ही नाम कमाया,
कैसे उन्हें भुलाओगे?
कितने पुरस्कार खेलों में,
देतीं अपनी सरकारें,
नौकरियों में मिले वरीयता
खुशियाँ हैं झाला मारें,
बढ़ें अगर खेलों में आगे
जीत वलर्ड कप लाओगे।
स्वास्थ्य बने खेलों से उत्तम,
मान और सम्मान मिले,
खेल बढ़ाते भाईचारा,
पंथ बहुत आसान मिले,
खेलो, सुस्ती दूर धकेलो
पूरे जग में छाओगे।
घमंडी लाल अग्रवाल, 785/8 अशोक विहार, गुडगाँव-122001
11 comments:
बहुत अच्छा लिखा है आपने मजा आ गया
बहुत बढ़िया उपदेशात्मक!
ab yah khavat galat ho gayi hai kheloge kudoge banoge nabab.....
बहुत सुंदर जी, कल से गिल्ली डंडा फ़िर से चालू
घमंडी ला अग्रवाल जी की रचनायें पहले भी पढ़ी थी........................बहुत प्रेरणास्पद।
प्रस्तुति के लिये धन्यवाद
घर में पढ़ लो, खेलो कूदो,
व्यर्थ समय न हो, यह देखो।
शिक्षाप्रद
पढाई और खेल दोनों जरुरी है..सुन्दर कविता..बधाई !!
सच्ची बात कही जी...सुन्दर कविता.
..बहुत बढ़िया सीख देती रचना ....
वाह!
बहुत सुन्दर रचना!
आपकी पोस्ट की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2011/02/34.html
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