Sunday 25 November, 2012

बच्चों की बनाई पेंटिंग उभरेगी डाक-टिकट पर

हॉलिडे भला किसे नहीं भाता। हर बच्चे की अपनी कल्पनाएँ होती हैं कि हॉलिडे को कैसे खूबसूरत और यादगार बनाया जाय। और जब मौका इन्हें पेंटिंग के रूप में चित्रित करने का हो तो कैनवास पर कई तरह के रंग उभर कर आते हैं।  डाक विभाग द्वारा 23 नवम्बर, 2012 को आयोजित “डिजाईन ए  स्टाम्प” प्रतियोगिता में हॉलिडे विषय पर बच्चों ने पेंटिंग में ऐसे ही रंग बिखेरे।
 
       इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इस प्रतियोगिता में इलाहबाद परिक्षेत्र में कुल 389 बच्चों ने भाग लिया, जिनमे इलाहाबाद में 37, प्रतापगढ़ में 78, जौनपुर में 79, व वाराणसी में 192 प्रतिभागी बच्चे  शामिल हैं।  इलाहाबाद  में कुल 18 स्कूलों के बच्चों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिनमे सैंट एंथोनी  गर्ल्स इन्टर कॉलेज, बिशप जॉन्सन इंटर कालेज, डा. के. एन. काटजू इंटर कालेज, ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर, वशिष्ठ वात्सल्य पब्लिक स्कूल, पतंजलि ऋषिकुल इत्यादि शामिल हैं। सभी विद्यार्थियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया - कक्षा 4 तक के विद्यार्थी, कक्षा 5 से कक्षा 8 तक के विद्याथी एवं कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के विद्यार्थी ।
 
 निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि इन सभी प्रविष्टियों का मूल्यांकन रीजनल स्तर पर करने के बाद तीनों वर्गों में श्रेष्ठ प्रविष्टि को निदेशालय स्तर पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शामिल करने हेतु परिमंडलीय कार्यालय लखनऊ भेजा जायेगा और  सभी श्रेणियों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्तर पर क्रमशः 10,000, 6,000 एवं 4,000 रूप्ये के तीन-तीन पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर दिये जायेगें । राष्ट्रीय स्तर पर चुनी गयी पुरस्कृत प्रविष्टियों के आधार पर ही अगले वर्ष बाल दिवस पर डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण एवं मिनियेचर शीट इत्यादि का प्रकाशन किया जायेगा। इस अवसर पर स्कूली बच्चों , शिक्षको व अभिभावकों ने फिलाटेलिक डिपाजिट अकाउंट खोलने में भी रूचि दिखाई जिसके तहत उन्हें हर माह घर बैठे डाक टिकटें प्राप्त हो सकेंगी

Tuesday 13 November, 2012

इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं

दीपावली व आतिशबाजी का गहरा नाता है। लक्ष्मी पूजन के बाद शगुन के रूप में फोड़े जाने वाले पटाखे अब हमारी ही मौत का सामान बनते जा रहे हैं। हवा में जहर घोलते ये पटाखे कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक व्याधियों को जन्म दे रहे हैं।

पटाखों की धमक हमारे चेहरे पर जरूर मुस्कान लाती है, पर यह मुस्कान हमारी बर्बादी का पूर्वाभ्यास होती है। इसका आभास हमें उस वक्त नहीं होता जब हम पटाखों की रोशनी में खो जाते हैं।

आजकल के युवा पटाखे खरीदते समय उसकी तीखे शोर व प्रकाश पर ध्यान देते हैं। पटाखे के रूप में हम पैसों की बर्बादी व जान को जोखिम में डालने का पूरा-पूरा सामान खुशी-खुशी घर लाते हैं।  
* बीमारियों को खुला न्योता :- पटाखे जब जलते हैं और तेज धमाके के साथ फूटते हैं तो हममें से हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती है। उस वक्त हम भूल जाते हैं कि इन पटाखों के काले धुएँ व शोर का हमारे शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा?

जब पटाखे जलते व फूटते हैं तो उससे वायु में सल्फर डाइआक्साइड व नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं। पटाखों के धुएँ से अस्थमा व अन्य फेफड़ों संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

* पटाखों का शोर मत कहना वन्स मोर :- पटाखों की आवाज हमारी श्रवण शक्ति पर भी प्रभाव डालती है। इससे भविष्य में हमारी श्रवण शक्ति कमजोर हो सकती है।

आम दिनों में शोर का मानक स्तर दिन में 55 व रात में 45 डेसिबल के लगभग होता है परंतु दीपावल‍ी आते-आते यह 70 से 90 डेसिबल तक पहुँच जाता है। इतना अधिक शोर हमें बहरा करने के लिए पर्याप्त है।

* पटाखे, हादसों का पर्याय :-
कोई चीज हमें नुकसान पहुँचा सकती है। यह जानते हुए भी हम उसका उपयोग करते हैं। पटाखे हादसों का पर्याय हैं। हमारी थोड़ी-सी लापरवाही हमारे अमूल्य जीवन को बर्बाद कर सकती है। यह जानते हुए भी हम अपने शौक के खातिर हँसते-हँसते अपनी जान को दाँव पर लगाते हैं।
प्रतिवर्ष दीपावली पर कई लोग पटाखों से जल जाते हैं व कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। अनार, रॉकेट, रस्सी बम आदि धमाकेदार पटाखों के शौकीनों के साथ तो ये हादसे होते ही हैं। उस विध्वंसकारी चीज को आखिर हम क्यों इस्तेमाल करते हैं, जो हमें केवल क्षणिक सुख देती है?

* इकोफ्रेंडली पटाखे बेहतर विकल्प :-
पटाखों के शौकीनों के लिए इस दीपावली पर बाजार में इकोफ्रेंडली पटाखे आए हैं, जिससे आपका पटाखे जलाने का शौक भी पूरा हो जाएगा और वो भी वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर। अब आप ही बताएँ कि है ना यह फायदे का सौदा?

जिस परिवेश में हम रहते हैं, उसी को हम प्रदूषित करके अपनी जान के लिए खतरा मोल लेते हैं। पटाखे फोड़ना कोई बुरी बात नहीं है। दीपावली खुशियों का त्योहार है तो क्यों न हम इस दीपावली पर वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर इकोफ्रेंडली पटाखों से अपने इस शौक को पूरा करें।

डूडल फार गूगल कांटेस्ट के विजेता बने अरुण कुमार यादव

प्रतिभा उम्र की मोहताज़ नहीं होती, बशर्ते उसे उचित परिवेश मिले। गूगल इंडिया ने चंडीगढ़ केंद्रीय विद्यालय के 9वीं क्लास के स्‍टूडेंट अरुण कुमार यादव को डुडल 4 गुगल कंपीटीशन-2012 का विजेता घोषित किया है। कंपीटीशन में विनिंग डुडल टाइटल इंडिया - प्रिज्म ऑफ मल्‍टीपलसिटी को 14 नवंबर चिल्ड्रन डे पर गुगल इंडिया के होम पेज पर लाइव डिस्प्ले किया जाएगा। ये डुडल क्लासमेट कंपनी की ओर से स्पेशल कलर पैक और बच्चें की ड्राइंग बुक्स पर भी चित्रित किया जाएगा। कंपीटीशन में फाइनल में पहुंचने वाले सभी प्रतिभागियों को सैमसंग टैबलेट और गुगल गुड डी बैग्स दिए जाएंगे।

इस साल के कंपीटीशन का थीम एकता में अनेकता था जिसमें दो लाख के करीब एंट्रीज मिली थी। कंपनी ने गुगल लोगो पर 5 से 16 साल के बच्‍चों को डुडलिंग के जरिए अपनी सृजन क्षमता दिखाने के लिए आमंत्रित किया था। प्रतियोगिता को तीन अलग -अलग कैटेगरीज में बांटा गया था। पहली कैटेगरी पहली से तीसरी क्लास, दूसरी में चौथी से छठी क्लास के और तीसरी कैटेगरी में 7वीं से 10वीं कक्षा के बच्‍चों को शामिल किया गया था। यादव के अलावा पहली से तीसरी क्लास की कैटेगरी में श्री अरबिंदो स्‍कूल ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन की सौभाग्‍य कालिया शामिल है। जबकि गुडग़ांव की अदिति तिवारी को चौथी से छठी क्लास वाली कैटेगरी में अंतिम तेरह में शामिल किया गया है। सभी को हार्दिक बधाइयाँ !!